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॥ सर्वार्थसिद्धिषचनिका पंडित जयनंद || दशम अध्याय ॥ पान ७९० ॥
तिनतें संख्यातगुणा नरकगतितें मनुष्य होय सिद्ध भये हैं । तिनतें संख्यातगुणा देवगतितें मनुष्य होय सिद्ध भये हैं । बहुरि वेदकर प्रत्युत्पन्ननयकरि तौ वेदरहित सिद्ध होय हैं। तहां अल्पबहुत्व नाहीं है । भूतनयअपेक्षा सर्वतें स्तोक तौ नपुंसकवेदतें श्रेणी चढि सिद्ध भये हैं । तिनतें संख्यातगुणा स्त्रीवेदतें श्रेणी चढि भये हैं । तिनतें संख्यातगुणा पुरुषवेदतें श्रेणी चढि भये हैं । बहुरि तीर्थकर तीर्थकर होय सिद्ध भये थोरे हैं, तिनतें संख्यातगुणा सामान्यकेवली भये सिद्ध हैं | बहुरि चारित्रकरि प्रत्युत्पन्ननयअपेक्षा चारित्रविनाही सिद्ध भये कहिये । तहां अल्पबहुत्व नाहीं । बहुरि भूतनयापेक्षया अनंतर चारित्र यथाख्यातहीतें सिद्ध होय हैं। तहांभी अल्पबहुत्व नाहीं । बहुरि अंतरसहित चारित्रअपेक्षा पंचचारित्रतें भये अल्प हैं । तिनतें संख्यातगुणा च्यारितें भये हैं । बहुरि प्रत्येकबुद्धनितें भये अल्प हैं । तिनतें संख्यातगुणा बोधितबुद्ध भये सिद्ध हैं । बहुरि प्रज्ञानकरि प्रत्युत्पन्ननयअपेक्षा तौ केवलज्ञानतें सिद्ध भये तिनमें अल्पबहुत्व नांही । बहुरि भूतनयअपेक्षा दोय ज्ञानतें सिद्ध भये अल्प हैं, तिनतें संख्यातगुणा च्यारि ज्ञानतें भये सिद्ध हैं । बहुरि तिनतें संख्यातगुणा तीन ज्ञानतें भये सिद्ध हैं । बहुरि अवगाहनाकरि जघन्य अवगाहनातें सिद्ध भये सर्वतें थोरे हैं । तिनतें संख्यातगुणा उत्कृष्टअवगाहनातें भये सिद्ध हैं । तिनतैं संख्यात
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