Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 811
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७९३ ॥ SamasapneIgORIAppeaparasparaPROICIAN आगे तत्वार्थवृत्ति सर्वार्थसिद्धि है नाम जाका तिसविर्षे तत्वार्थका दशमां अध्याय समाप्त भया ॥ याका तात्पर्य तत्वार्थवार्तिकविर्षे कह्या है सो लिखिये हैं ऐसे निसर्गअधिगमविर्षे एकतै उपज्या जो तत्वार्थश्रद्धानस्वरूप सम्यग्दर्शन शंकादिअतीचारनिकरि रहित संवेग अनुकंपा आस्तिक्यकरि जाका प्रगट होना ऐसा विशुद्ध ताहि अंगीकारकरि, बहुरि तिसहीकी प्राप्तिकरि विशुद्ध भया जो सम्यग्ज्ञान ताहि अंगीकारकरि, बहुरि नामआदि निक्षेप प्रत्यक्षममाण निर्देश आदि सत् संख्या आदि अनुयोग | नैगमादिनय इत्यादिक जे तत्वार्थके जाननेके उपाय तिनकरि जीवनिके पारिणामिक औदायिक औपशमिक क्षायिक क्षायोपशामिक जे भाव ते स्वतत्व हैं, तिनकू जाणिकरि, बहुरि जीवके भोगके साधन जे अचेतनपदार्थ तिनका उत्पत्तिविनाशस्वभावके जानने” तिनतें विरक्त तृष्णारहित हूवा संता तीनि गुप्ति पांच समिति दशलक्षण धर्मके आचरण” बहुरि तिनका फल देखनेते मोक्षकी प्राप्तिके यतनके अर्थि बढाया है श्रद्धान अर संवेग जानें, बहुरि भावनाकरि प्रगट भया है अपना स्वरूप जाकै, बहुरि अनुप्रेक्षाके चितवनकरि दृढ कीया है परद्रव्यका त्याग जानें, बहुरि संवररूप भया है आत्मा जाका, याहीत आश्रवरहित भया तातें नाहीं है नवीन कर्मका आवना जाकै, बहुरि बाह्य अभ्यंतरके तपते परीषहके जीतने कर्मके फल भोगने” बहुरि सम्यग्दृष्टीते लगाय जिनपर्यंत परिणामकी विशुद्धतात असंख्यातगुण निर्जरा बढतीकी पामित जसंच्यरूप कर्मकू निर्जरारूप करता संता, बहुरि सामायिकतें लगाय सूक्ष्मसांपरायपर्यंत जे संयमकी लब्धिके स्थान तिमकू उत्तरोत्तर वृद्धि पावनेपुलाक आदि निग्रंथमुनि तिनका संयमका अनुक्रमतें | For Private and Personal Use Only

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