Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

View full book text
Previous | Next

Page 795
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७७७ ।। urGet0s aasabseresubroxesabreto 4000+DeoriessertopurA | होय नाही, तातें पहलेही अभाव है, सो तौ अयत्नसाध्य है । अर यत्नसाध्य कहिये हैं, असंय तसम्यग्दृष्टि आदि च्यारि गुणस्थाननिविर्षे कोई एक गुणस्थानविर्षे मोहनीयकर्मकी सात प्रकृतिका क्षय करै है। बहुरि निद्रानिद्रा; प्रचलाप्रचला; स्त्यानगृद्धि; नरकतिर्यंचगति; एकेंद्रिय, दींद्रिय, वींद्रिय, चतुरिंद्रिय ए च्यारि जाति; नरकतिर्यंचगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य; आताप; उद्योत; स्थावर; सूक्ष्म; साधारण इन सोलहप्रकृतिनिका अनिवृत्तिवादरसांपरायगुणस्थानविर्षे युगपत् क्षय करै है । बहुरि तातें परै तिसही गुणस्थानमें अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण आठ कषाय क्षय करै है । बहुरि तिसही गुणस्थानमें अनुक्रमतें नपुंसक्वेद अर स्त्रीवेदकू क्षय करै है । बहुरि तहांही नोकषाय षद् हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्सा इनकू एककाल क्षय करै है । तापीछे तिसही गुणस्थानमें अनुक्रमकरि पुरुषवेद संज्वलन क्रोध मान माया इनका अत्यंत नाश करै है । ऐसें छत्तीस प्रकृ. तिकी नवमें गुणस्थानविर्षे व्युच्छित्ति है । बहुरि लोभसंज्वलन सूक्ष्मसांपराय दशमगुणस्थानविर्षे नाशकू प्राप्त होय है । बहुरि क्षीणकषाय बारमा गुणस्थान जो छद्मस्थ वीतराग ताके उपांत्यसमय जो अंतसंयमतें पहला समय ताविर्षे निद्रा प्रचला ए दोय क्षय होय हैं । बहुरि ताके अंतके | समय पांच ज्ञानावरण च्यारि दर्शनावरण पांच अंतराय इन चौदह प्रकृतिनिका क्षय होय है । m isexiboexisastarts: For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824