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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७८५ ॥
क्यों जाय नाही? ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं
॥धर्मास्तिकायाभावात् ॥ ८॥ याका अर्थ- मुक्तात्मा लोकके अंतताई जाय है । परै अलोकमें न जाय है । जातें तहां धर्मास्तिकायका अभाव है । गति उपग्रहका कारण जो धर्मास्तिकाय सो लोकतें परै उपरि नाहीं है। तातें मुक्तात्माका अलोकमें गमनका अभाव है। बहुरि धर्मास्तिकायका अभाव सर्वत्र मानिये तो लोकअलोकके विभागका प्रसंग होय । ऐसें जनना ॥ __आगें पूछे है, कि, ए निर्वाणकू प्राप्त भये जीव तिनके गति जाति आदिक तो कारण नाहीं । तातें इनविर्षे भेदका व्यवहार नाहीं है कि किछू भेदका व्यवहार कीजिये ? ताका उत्तर, जो, कथंचित् भेदभी करिये है, सो काहेरौं करिये ? ताका सूत्र कहै हैं
॥क्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधित
ज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः ॥९॥ याका अर्थ- क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्धवोधित,' ज्ञान, अवगाहना, हा अंतर, संख्या, अल्पबहुत्व इन बारह अनुयोगनिकरि सिद्धजीव भेदरूप साधने । क्षेत्रादि बारह ||
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