Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 801
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७८३ ॥ मुक्त होय तथा तिष्ठेभी नाहीं है बहुरि अन्यदिशाकुंभी न जाय है ॥ आगें पूछे है, जो, यह ऊर्ध्वगमनहेतुके कहेविना कैसे निश्चय करिये ? ऐसें पूछे ताके निश्चय करनेकू हेतु कहै हैं ॥पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाबन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च ॥६॥ याका अर्थ- पूर्वके प्रयोगते असंगपणेतें बंधके छेदतें तैसाही गतिपरिणामतें इन च्यारि हेतुनतें ऊर्ध्वगमन निश्चय करना । आगे कहै हैं, हेतुका अर्थ पुष्टभी है तोऊ दृष्टांत अरु सम. र्थनविना साध्य के साधनेकू समर्थ नाहीं होय है । तातें वांछितसाधनेकू दृष्टांत कहिये हैं ॥ आविध्दकुलालचक्रवव्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावञ्च ॥७॥ __याका अर्थ- पूर्वं हेतु कह्या तिनके ए च्यारि दृष्टांत हैं। फिराये कुमारके चाककीज्यों लेपते रहित भये तूंबीकीज्यों एरंडके बीजकीज्यौं अमिकी शिखाकीज्यों ऐसे च्यारि दृष्टांतनिकरि ऊर्द्धगमन जानना । पहले सूत्रमें कहे जे च्यारि हेतु अर इस सूत्रमें कहे जे च्यारि दृष्टांत तिनका यथासंख्य संबंध करना । सोही कहिये है। जैसे कुमारके प्रयोगते भया जो हस्तका अरु दंडका अर चाकका संयोग, तिसकरि भया जो चाकका फिरना, सो कुमार फिरावता रहि गया | तौऊ पहले प्रयोगते जहांताई वाके फिरनेका संस्कार न मिटै, तहांताई फिरवौही करै । ऐसाही SAFARPANCHANPATIONFARPANCHAPRINCIPARINEIRPORAPARPRIASIPR For Private and Personal Use Only

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