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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय । पान ७८१ ॥
ठहया। आचार्य कहै हैं, जो, ऐसे तो जब होय जो विशेष न कहिये । इहां विशेष है। ऐसे पूर्वसामान्यसूत्रका विशेष कहनेकू सूत्र कहै हैं
॥ अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेन्यः ॥४॥ ___ याका अर्थ- केवलसम्यक्त्व ज्ञान दर्शन सिद्धत्व इन भावनिविना अन्यभावनिका इहां अन्यत्र ऐसा शद्धकी अपेक्षाकरि पंचमी विभक्तिका निर्देश है । तातें ऐसा जानिये, जो, केवलसम्यक्त्व ज्ञान दर्शन सिद्धत्वविना अन्यविर्षे पूर्वसूत्रकी विधि है । इहां अन्यत्रशब्द वर्जनके अर्थमें है । अरु अन्यशब्दपरि वल प्रत्यय है सो स्वार्थविर्षे है । बहुरि प्रश्न, जो, मोक्ष भये ए च्यारिही भाव अवशेष रह्या कह्या तौ अनंतवीर्यादिककाभी अभाव आया। ताका समाधान, जो, यह दोष नाहीं। अनंतवीर्यादिक हैं, ते ज्ञानदर्शन अविनाभावी हैं। तातें उनके कहने में तेभी गिणि लेणो। इनमें विशेष नाहीं कह्या । जाते अनंतवीर्य सामर्थ्य करि हीन तौ अनंतनानदर्शनकी | प्रवृत्ति होय नाहीं । बहुरि सुख है सो ज्ञानमयही है । ज्ञानविता जडकै वेदना नाहीं ॥
बहरि प्रश्न, जो, मक्त भये पी, किछ आकार नाही, तातें अनाकार है, सो तो अभावही है । ताका समाधान, जो, अनाकार नाही है-तिस शरीरतें मुक्त भया तिस शरीरके आकार जीवके
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