________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकुता ॥ नवम अध्याय || पान ७७०॥
धारे, कोई जटा धारे, कोई कौपीन धारै, कोई. दंड धारै, कोई शस्त्र धारै, कोई पालकी चदै, कोई स्थ चढे इत्यादिक स्वरूप लिंगभेद नाही, ए सर्व अन्यमतीनिके भेद हैं। तथा इस पंचमकालमें जिनमतमें भी जैनाभास भये हैं । तिनमें भेद पड्या है । यह कालदोष है ।।
बहुरि लेश्या पुलाककै तौ तीनि शुभही होय हैं । जाते याकै बाह्यप्रवृत्तिका आलंबन | विशेष नाहीं है। अपने मुनिपणाहीसूं कार्य है। बहुरि बहुत तीव्र मंद परिणाम नाहीं होय हैं। बहुरि बकुश प्रतिसेवनाकुशीलके छहभी होय हैं। इहां अपिशब्दकरि ऐसा जनाया है, जो, अन्य आचार्य तीनि शुभही कहे हैं । बहुरि कषायकुशीलकै कपोततें लगाय शुक्लपर्यंत च्यारि होय हैं। इहांभी अन्य आचार्यनिकी अपेक्षा तीनि जाननी। बहुरि निग्रंथ स्नातककै एक शुक्लही | है । लेश्याके स्थानक कषायनिके मंद तीव्र स्थानकनिकी अपेक्षा असंख्यात लोकपरिमाण कहे हैं। | सो इनका पलटना सिद्धांतनितें जानना ॥ बहुरि उपपादपुलाक तो उत्कृष्टपणे उत्कृष्टस्थितीवाले | सहस्रारस्वर्गके देव तिनमें उपजै तहां अठारह सागरकी आयु पावें । बहुरि बकुश प्रतिसेवनाकुशील | उत्कृष्टपणे आरण अच्युत स्वर्गके देव बाईस सागरकी स्थितीवाले तिनमें उपजै हैं । बहुरि कषाय| कुशील निग्रंथ तेतीस सागरकी स्थितीवाले सर्वार्थसिद्धिके देवनिविर्षे उत्कृष्टपणे उपजे हैं। बहुरि
For Private and Personal Use Only