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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७७२ ॥
पहका जीतना, चारित्र तप ऐसें व्याख्यान भया । ताकू भले प्रकार जानि श्रद्धान करि भव्यजीव हैं ते इनका धारण करौ । मोक्षकी प्राप्तिका यह उपाय है । यामें तत्पर होना योग्य है । ऐसा श्रीगुरुनिका उपदेश है ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥१॥ आश्रवनिरोध रीति संवर सुबोधनीतिकारण विबोध गीत जानिये सुज्ञानतें । गुपति समिति धर्म जानूं अनुप्रेक्षा मर्म सहन परीषह परीस्या श्रम ठानिये उठानतें ॥ संयम संभारि करौ तप अवि. कार धरौ उद्यम विचारि ध्यान धारिये विधानतें । नवमां अध्यायमांहि भाषे विधिरूप ताहि जानि धारि कर्म टारि पावौ,शिवमान ते ॥ १ ॥
ऐसे तत्वार्थका है अधिगम जातें ऐसा जो मोक्षशास्त्र ताविर्षे
नवमां अध्याय सम्पूर्ण भया ॥ ९ ॥
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