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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । दशम अध्याय ॥ पान ७७३ ॥
॥ नमः सिद्धेभ्यः ।। ॥ आगें दशमां अध्यायका आरंभ है ॥
-- * --- दोहा- अष्टकर्मळू नष्ट करि, भये सुसिद्ध अनंत ॥
__नमि तिनकुं व्याख्या करूं, मोक्षपदारथ अंत ॥ १ ॥ ऐसें मंगलके अर्थि सिद्धनिकू नमस्कार करि, दशम अध्यायकी वचनिका लिखिये हैं.॥ तहां सर्वार्थसिद्धिटीकाकारके वचन हैं, जो, शिष्य कहै है, अंतकेविर्षे कह्या जो मोक्षपदार्थ ताका स्वरूप कहनेका अवसर है । तहां आचार्य कहै हैं, यह सत्य है, परंतु मोक्षकी प्राप्ति केवलज्ञानकी प्राप्तिपूर्वक है, तातें पहले केवलज्ञानकी उत्पत्तिका कारण कहिये हैं, ताका सूत्र
॥मोहक्षयात् ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥ १॥ याका अर्थ- मोहके क्षयतें बहुरि ज्ञानावरण दर्शनावरण अंतराय इन तीनके क्षयतें केवल
SAFARPATIAFORAINAROPORTHOPRANAYAMAIRATAPDRAGAPRrapapna
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