Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 763
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७४५ ॥ आगें पूछे है, जो, दोय ध्यान उत्तर मोक्षके कारण कहै, तामें आद्यका ध्यानके भेद स्वरूप स्वामीका निर्देश करना । ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं ॥ आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम् ॥ ३६॥ याका अर्थ- आज्ञा अपाय विपाक संस्थान इनिका विचय कहिये विचार ताकै अर्थि चितवन होय सो ए धर्म्यध्यानके च्यारि भेद हैं । तहां विचय विवेक विचारणा एकार्थ है। आज्ञा अपाय विपाक संस्थान इन च्यारिनिका विचय । बहुरि स्मृतिसमन्वाहारकी इहां अनुवृत्ति करणी सो जुदाजुदा लगाय लेणा । ऐसें आज्ञाविचम स्मृतिसमन्वाहार इत्यादि संबंध जानना । सोही कहिये हैं। तहां उपदेशदाताके अभावतें अपनी मंदबुद्धीतें कर्मके उदके वशते जे सूक्ष्मपदार्थ हैं तिनका हेतु दृष्टांत जानेंविना सर्वज्ञका कह्या आगमही• प्रमाणकरि अर " यह पदार्थका स्वरूप सर्वज्ञ भाषा है तैसेंही है, जातें जिनदेव सर्वज्ञ वीतराग है, अन्यथा कहै नाही," ऐसें गहन पदार्थका श्रद्धानतें अर्थका अवधारणा सो आज्ञाविचय है । अथवा आप जान्या है पदार्थका स्वरूप जानें, | तैसाही परकू कहने की है इच्छा जाकै ऐसे पुरुषके अपने सिध्दांतके अविरोधकरि तत्त्वार्थकू दृढ कर|| नेका है प्रयोजन नारि तर्क नप प्रमाणकी योजनाके विर्षे प्रवीण ऐसा जो स्मृतिसमन्वाहार AltoubseDirserasasaraisalamatouttarai For Private and Personal Use Only

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