Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 770
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७५२ ॥ नकू आलंबन करै फेरि ताकुंभी छोडि अन्यवचनकू आलं यह व्यंजनसंक्रांति है । बहुरि काययोगका आलंबनकू छोडि वचनयोग तथा मनोयोगकू आलंबन करै, अन्ययोगळू छोडि फेरिफेरि काययोगकू आलंबै यह योगसंक्रांति है । ऐसा परिवर्तन करै सो वीचार है ॥ इहां प्रश्न , जो, ऐसे उल्टै तब ध्यान कैसे कहिये ? ध्यान तो एकाग्र कह्या है । ताका समाधान, जो, एककू आलंबिकरि क्यों एक ठहरि पीछे दूजेकू आलंबन करै तहां ठहरै। ऐसे ध्यान तौ ठहरनेहीकू कहिये । परंतु इहां पहलें ठहन्या फेरि ठहरना ऐसें ध्यानका संतान है, सो ध्यानही है, या दोष नाहीं । सो यह सामान्यविशेषकरि कह्या जो च्यारिप्रकार धर्मध्यान अर च्यारिप्रकार शुक्लध्यान सो पहले कहे जे गुप्ति आदि तिनस्वरूप जो अनेकप्रकार ध्यानके उपाय | तिनकरि कीया है उद्यम जानें ऐसा जो मुनि सो संसारके नाशके अर्थि ध्यान करनेकू योग्य हो है। तहां द्रव्यपरमाणु अथवा भावपरमाणुकू ध्यावता लीया है श्रुतज्ञानका वचनस्वरूप वितर्ककी सामर्थ्य जानें ऐसें अर्थ अरु व्यंजन तथा काय अर वचनकू पृथक्त्व कहिये भिन्नपणाकरि पलटता जो मन सो कैसा है मन ? जैसे कोई पुरुष कार्य करनेकू उत्साह करै सो जेता अपना बल होय तेतें | कीयाही करै बैठि न रहै, तैसें मनका बल होय तेसै ध्यानकी पलटनी होवी करै, बैठि न रहै । ऐसें For Private and Personal Use Only

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