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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७६२ ॥ तिस क्षीणमोहते असंख्यातगुण निर्जरावान होय है ।।
इहां विशेष जो, एकादशस्थान एकजीव अपेक्षा कहे तैसेंही नानाजीव अपेक्षा जाननो। याका विशेष कथन गोमटसार लब्धिसार क्षपणासारतें जानना ॥ आगें पूछे हैं, जो, सम्यग्दर्शन होतेंभी स्थानकस्थानकप्रति असंख्यातगुणी निर्जरा कही, याते परस्पर समानपणा तौ नाहीं भया । सो इहां विरतआदिके गुणका भेद है। यातें जैसे श्रावक निग्रंथ नाहीं तैसे ते मुनि संयमीभी निग्रंथ नाहीं ठहरेंगे। जातें बाह्य आभ्यंतर ग्रंथ जिनके नाहीं ऐसे निग्रंथ तो ग्यारमां बारमा गुणस्थानवर्ती हैं, नीचिले तो सग्रंथही ठहरेंगे। आचार्य कहै हैं, जो, यह ऐसा नाहीं है । तातें गुणके भेदतें परस्पर गुणका विशेष है तोऊ नैगमआदि नयके व्यापारतें सर्वही संयमी मुनि निग्रंथ हैं ऐसा सूत्र कहै हैं
॥ पुलाकबकुशकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातका निर्ग्रन्थाः ॥ ४६॥ ___याका अर्थ- पुलाक बकुश कुशील निग्रंथ स्नातक ए पांचप्रकार मुनि हैं, ते सर्वही निग्रंथ हैं। तहां उत्तरगुणकी भावनाकरि रहित है मन जिनका बहुरि व्रतनिविर्षेभी कोई क्षेत्रविर्षे कोई कालविर्षे परिपूर्णताकू नाही पावते संते पुलाक ऐसा नाम पावै हैं। पुलाक ऐसा नाम पराल
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