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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७६१ ॥
दग्ध करता संता परिणामकी शुद्धिका अतिशयके योगते दर्शनमोहक्षपक नाम पावै तब तिस विरततेंभी असंख्यातगुण निर्जरावान् होय है । बहुरि ऐसे सो क्षायिकसम्यग्दृष्टि होयकरि श्रेणीकू चढनेकू सन्मुख होय तब चारित्रमोहके उपशमावनेप्रति व्यापाररूप होता संता परिणामकी विशुद्धताके योगते उपशमक ऐसा नाम पावता संता तिस क्षपकते असंख्यातगुण निर्जरावान् होय है । बहुरि सोही जीव समस्तचारित्रमोहका उपशम करनेका निमित्तकू निकट होतें पाया है उपशांतकषाय नाम जानें ऐसा होयकरि तिस उपशमकते असंख्यातगुण निर्जरावान होय | है । बहुरि सोही जीव समस्तचारित्रमोहकी उपशम करनेका निमित्तकू निकट होते पाया है
उपशांतकषाय नाम जानें ऐसा होयकरि तिस उपशमकते असंख्यातगुण निर्जरावान् होय है । | बहुरि सोही जीव समस्तचारित्रमोहकी क्षपणाप्रति सन्मुख हुवा संता परिणामकी विशुद्धताकरि
वधता संता क्षपकनामकू पावता संता तिस उपशांतकषायतें असंख्यागुण निर्जरावान् होय है । || बहुरि सोही जीव चरित्रमोहके सम्पूर्ण क्षपणाके कारणपरिणामके सन्मुख हूवा संता क्षीणकषाय
नाम पावता संता तिस क्षपकतें असंख्यातगुणनिर्जरावान् होय है । बहुरि सोही जीव द्वितीयशुक्ल। ध्यानरूप अभिकरि दग्ध कीये हैं घातिकर्मके समूह जानें ऐसा हुवा संता जिन नाम पावै, तब
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