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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsur Gyarmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७६१ ॥ दग्ध करता संता परिणामकी शुद्धिका अतिशयके योगते दर्शनमोहक्षपक नाम पावै तब तिस विरततेंभी असंख्यातगुण निर्जरावान् होय है । बहुरि ऐसे सो क्षायिकसम्यग्दृष्टि होयकरि श्रेणीकू चढनेकू सन्मुख होय तब चारित्रमोहके उपशमावनेप्रति व्यापाररूप होता संता परिणामकी विशुद्धताके योगते उपशमक ऐसा नाम पावता संता तिस क्षपकते असंख्यातगुण निर्जरावान् होय है । बहुरि सोही जीव समस्तचारित्रमोहका उपशम करनेका निमित्तकू निकट होतें पाया है उपशांतकषाय नाम जानें ऐसा होयकरि तिस उपशमकते असंख्यातगुण निर्जरावान होय | है । बहुरि सोही जीव समस्तचारित्रमोहकी उपशम करनेका निमित्तकू निकट होते पाया है उपशांतकषाय नाम जानें ऐसा होयकरि तिस उपशमकते असंख्यातगुण निर्जरावान् होय है । | बहुरि सोही जीव समस्तचारित्रमोहकी क्षपणाप्रति सन्मुख हुवा संता परिणामकी विशुद्धताकरि वधता संता क्षपकनामकू पावता संता तिस उपशांतकषायतें असंख्यागुण निर्जरावान् होय है । || बहुरि सोही जीव चरित्रमोहके सम्पूर्ण क्षपणाके कारणपरिणामके सन्मुख हूवा संता क्षीणकषाय नाम पावता संता तिस क्षपकतें असंख्यातगुणनिर्जरावान् होय है । बहुरि सोही जीव द्वितीयशुक्ल। ध्यानरूप अभिकरि दग्ध कीये हैं घातिकर्मके समूह जानें ऐसा हुवा संता जिन नाम पावै, तब aathibheraprseraiboerisahurtNaisatirerasberriedies For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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