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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता || नवम अध्याय || पान ७५१ ॥
वितर्कसहित अर वीचारसहित है । अर दूसरा वितर्कसहित अवीचार है ॥ आगें वितर्कवीचारविषै कहा विशेष है? ऐसें पूछें सूत्र कहै हैं॥ वितर्कः श्रुतम् ॥ ४३ ॥
याका अर्थ - वितर्क ऐसा श्रुतकूं कहिये । इहां तर्कण कहिये समूहन सो विशेषकर होय सो वितर्क है । सो ऐसा नाम श्रुतज्ञानका है । सो इहां श्रुतज्ञान शब्दश्रवणपूर्वक ज्ञानका ग्रहण है | अर मतिज्ञानका भेद चिंताका नामभी तर्क है, ताका ग्रहण नाहीं है ॥
आगे पूछें है कि, वीचार कहा है ? ऐसें पूछें सूत्र कहै हैं-॥ वीचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः ॥ ४४ ॥
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याका अर्थ - अर्थ व्यंजन योग इन तीनूनिका संक्रांति कहिये पलटना, सो वीचार है । तहां अर्थ कहता तो अभिधेयवचनकरि कहने कूं योग्य वस्तु है, सो द्रव्य है तथा पर्याय है । बहुरि व्यंजनशब्दकरि वचनका ग्रहण है । बहुरि योग कायवचनमनकी क्रियाकूं कहिये है । बहुरि संक्रांति कहिये परिवर्तन पलटना । तहां द्रव्यकूं छोडि पर्याय में आवै, पर्यायकूं छोडि द्रव्यमें आवै यह तौ अर्थसंक्रांति है | बहुरि एक श्रुतके वचनकूं ग्रहणकरि फेरि ताकूं छोडि दूसरा श्रुतका वच
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