________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
P
bre
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७४९ ॥
स्तज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षय भया ऐसे जे सयोगकेवली तथा अयोगकेवली तिनकै उत्तर दोय शुक्लध्यान यथासंख्य जानने । सयोगकेवलीकै तीसरा सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति होय है । अयोगकेवलीकै चौथा व्युपरत क्रियानिवर्ति होय है । आगें शुक्लध्यानके भेद कहने कूं सूत्र कहै हैं
॥ पृथक्त्वैकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रिया निवर्तीनि ॥ ३९ ॥ याका अर्थ - प्रथक्त्ववितर्क एकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति व्युपरत क्रियानिवर्ति ए च्यारि शुक्लध्यानके भेद हैं । इनका अर्थ आगे सूत्र कहसी । तिनकी अपेक्षा अन्वर्थ कहिये जैसा इनका नाम है तैसाही अर्थ जानना ॥
आगें, इनके योगनिका आलंबन न्यारान्यारा है । ताके जानने के अर्थि सूत्र कहै हैं॥ त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ॥ ४० ॥
याका अर्थ - पहला भेद तौ तीनूं योगनिविष होय है । दूजा भेद तीनूं योग में एक कोई योगविष होय है । तीसरा भेद एक काययोगहीविषै होय है । चौथा भेद योगरहितविर्षे होय है । तहां योग काय वचन मनकी क्रिया है, सो पूर्वै इनका स्वरूप कह्याही है । सो च्यारि भेद शुक्लध्यानके कहे, तिनकै तीनि योग, एक योग, काययोग, अयोग ए च्यारि यथासंख्य
For Private and Personal Use Only