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॥ सर्वार्थसिदिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७४६ ॥ | कहिये वारवार चितवन, सोभी आज्ञाविचय है । जाते यामें सर्वज्ञकी आज्ञा प्रकाशनेहीका प्रयोजन भया, तातें आज्ञाविचय ऐसा कहना ।। ___ बहुरि ये प्राणी सर्वज्ञके आज्ञातें विन्मुख हैं, ते सर्व अंधकीज्यों मिथ्यादृष्टि हैं, अर मोक्षके अर्थि हैं परंतु सम्यङ्मार्गदूरिही प्रवते हैं । ऐसें समीचीनमार्गका अपायका चिंतवना सो अपायविचय है । अथवा मिथ्यादर्शन ज्ञान चारित्रतें ए प्राणी कैसे रहित है! ऐसी चिंता वारवार करणी सोभी अपायविचय है । अपाय नाम अभावका है । सो मिथ्यादृष्टिनिके सांचे मार्गका अभाव चिंतवना तथा तिनके मिथ्यामार्गका अभावका उपाय चिंतवना तातें अपायविचय कहिये । बहुरि ज्ञानावरणादि कर्मनिका द्रव्य क्षेत्र काल भव भावके निमित्ततें भया जो फल ताका अनुभवका जो चिंतवना, सो विपाकविचय है । बहुरि लोकका संस्थानके विर्षे चितवन रहै, सो, संस्थानविचय है। ऐसे उत्तमक्षमादिरूप धर्म कह्या था तथा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्ररूप धर्म तथा वस्तुका स्वरूप सो धर्म तिसते लग्या हूवा धर्मध्यान च्यारिप्रकारही जानना । यह अविरतसम्यग्दृष्टि देशविरत प्रमत्तसंयत अर अप्रमत्तसंयत इनकै होय है ।।
इहां ऐसा जानना, जो, आज्ञा तो सर्वज्ञकी वाणी है । अपाय मिथ्यात्वतें अपशरण करना
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