________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
--
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७१७ ॥ अर अर्जिका करें, तब एक गुरु होय दोय अर्जिका होय ऐसे तीनि होतें करै, से जहां करै अंधकारमें न करै । बहुरि लज्जाकरि तथा अपमानके भयकरि दोष प्रगट न सोधै तौ नाही है धनविर्षे लेना जाके ऐसा जो लोभी सो धन विनशै खेदखि चारित्रके दोषतें खेदखिन्न रहै है । बहुरि जो आलोचना न करै तौ महान तपभी वांहि दे है । जैसें कडी औषधि कायविर्षे गयेविना फलदाता नाही, तैसें जानना । ब नभी करै अर गुरुका दीया प्रायश्चित्त न ले तोभी महान फल न होय है । जैसैं को वीनने लगे, तामें एकएक देखतें कंकर आदि देखता तो जाय, अर कंकरकू काढे अन्न उत्तमस्वादरूप फलकों नाहीं दे; तैसें जानना । बहुरि आलोचनकरि प्रायश्चित्त मांजा आरसा रूप उज्वल दीखै तैसें व्रत उज्वल होय है ।।
प्रतिक्रमणका लक्षण पूर्व कह्याही है । बहुरि तदुभयका प्रयोजन यह है। कोऊ आलोचनहीतें मिटै है । कोऊ प्रतिक्रमणहीतें मिटै है । कोऊ दोष दोऊ करें मिटें है। इहां। केरै है, जो, यह तो अयुक्त है। कहा, जो, बिनाआलोचन तौ प्रायश्चित्त नाहीं कह्य कह्या, जो, प्रतिक्रमणहीतें शुद्ध होय है, सो यऊ अयुक्त है । बहुरि कहोगे, जो, आ
For Private and Personal Use Only