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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७४२ ॥ नाश कैसे होय ? ऐसा संकल्परूप चिंताप्रबंध होय सो तीसरा भेद आर्तध्यानका है | आगे चौथा भेद आर्तध्यानका लक्षणसूत्र कहै हैं
॥निदानं च ॥३३॥ याका अर्थ-- आगामी भोगनिकी वांछा, सो निदान कहिये । ताका चितवन रहै, सो चौथा भेद आर्तध्यानका है । भोगनिकी वांछाकरि आतुर जो पुरुष ताके आगामी कालविषय || विषयनिकी प्राप्तिप्रति मनका संकल्प रहै, वाखार चिंतवन रहै, सो चौथा भेद आर्तध्यानका है।
इहां कोई कहै, जो, मनोज्ञवस्तुके संयोगकी वांछा तो दूसरे भेदविर्षे कहीही थी, यामें वामें कहा भेद ? ताकू कहिये, पूर्व न पाये ऐसे विषयकी प्राप्तिकी वांछा सो तौ निदान है । अर पायेका | वियोग है, ताके संयोगकी वांछा सो दूसरा भेद है ऐसा विशेष जानना ॥ आगें पूछे है, ए च्यारि भेद आर्तध्यानके कहे ते कौन कौनकै होय हैं ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
तदविरतदेशाविरतप्रमत्तसँयतानाम॥32॥ याका अर्थ- यह च्यारिप्रकारका आर्तध्यान अविरतका है ये असंयमी, देशविरत कहिये | संयमासयमी, प्रमत्तसंयत कहिये प्रमादसहितसंयमी इनकै होय है । तहां अविरत तो मिथ्यात्व
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