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ఆడవనుండగలనకుంటారకులను
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७४० ।। धर्म्य कहिये । शुचिगुणयोगते शुक्ल कहिये । आत्माका परिणाम कषायमलरहित उज्वल होय सो शुक्ल है । सो यह च्यारिप्रकार ध्यान है । प्रशस्त अप्रशस्त भेदतें दोयप्रकार है । तहां अप्रशस्त आर्त रौद्र हैं । सो तो पापके आश्रवकू कारण हैं । बहुरि प्रशस्त धर्म्य शुक्ल हैं। सो कर्मके नाशकू कारण हैं। आगे कहै हैं, प्रशस्तध्यान कैसे है ताका सूत्र
॥परे मोक्षहेतू ॥ २९॥ ___याका अर्थ- पर कहता अंतके दोय ध्यान हैं ते मोक्षके कारण हैं । तहां परशब्दतें अंतका एक है ताके समीपते धर्नाकू उपचारकरि पर कहिये । जाते सूत्रमें द्विवचन है, ताकी सामर्थ्यतें गौणकाभी ग्रहण भया । ऐसें पर कहता धर्म्य शुक्ल ए दोय मोक्षके कारण हैं। प्रशस्त हैं इस वचनकी सामर्थ्यतेही पहले आर्त रौद्र दोऊ अप्रशस्त संसारके कारण जानिये ॥ आगे आर्तध्यान च्यारिप्रकार है, तहां आदिके भेदका लक्षण कहनेकू सूत्र कहै हैं
॥आर्तममनोज्ञस्य सम्प्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः॥३०॥ याका अर्थ- अमनोज्ञवस्तुका संयोग होते तिसके वियोग करने कू बारबार चितवन होय, | चिंताका प्रबंध होय, सो पहला आर्तध्यानका भेद है। तहां अमनोज्ञ नाम अप्रियका है। जो
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