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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । अष्टम अध्याय । पान ५९४ ।। कर्णराजा एता बडा पुरुष था, सोभी युद्ध में हण्या गया, ऐसे दैववाद है ॥ ... बहुरि संयोगवादी कहे हैं, जो, वस्तुनिका संयोग मिलेही कार्यसिद्धि है। देखो, एक पह्यासं रथ चलता नाही, तहां अंधा पंगुला जुदेजुदे तो वनमें भटकै अर दोऊका संयोग भया तब नगरमें आय गये, ऐसे संयोगवाद है । बहुरि लोकरूढिवादी कहै हैं, जो, लोकवि रूढिही एकवार चलि गई पीछे ताकू देवभी मिलिकरि निवारण कीया चाहें तौ निवारी न जाय । देखो, द्रौपदीने अर्जुनके गलेमें वरमाला डारी थी, तब लोक परस्पर कहने लगे, जो, माला पांडवनिके गलेमें डारी, सो कहनावति अबताई चली जाय है । कोऊ मैंरि सकै नाहीं । ऐसें सर्वथाएकांतपक्षके संक्षेप कहे । बहुत कहांतांई कहिये? जेते वचनके मार्ग हैं तेतेही नयनिके वाद हैं बहुरि जेते नयनिके वाद हैं, तेते अन्यमत हैं, ते सर्व मिथ्या हैं । जातें सर्वथाएकान्तपक्षकरि कहे हुए हैं, तातें सर्व परमत हैं। बहरि तेही नयके वचन सर्वही सम्यक हैं, सत्य हैं, जैनमतके हैं, जातें कथंचित्प्रकारकरि कहे हुए होय हैं ।
बहुरि स्वामिसमंतभद्राचार्य आप्तकी परीक्षाके अर्थि देवागमस्तोत्र रच्या है, तामें सत्यार्थ | sil आप्तका तौ स्थापन असत्यार्थका निराकरणके निमित्त दस पक्ष स्थापी हैं। तहां १ अस्ति नास्ति, |
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