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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ५९२ ॥
पदार्थनिपरि लगाईये, तब चौदह भये । बहुरि काल ईश्वर नियति आत्मा स्वभाव इन पांचनिपरि लगाईये तब सत्तरि भंग होय हैं । बहुरि काल अरु नियतिकरि सात पदार्थ फेरि नास्तित्वपरि लगावणा ऐसें चौदह होय हैं । सब मिलि चौरासी अक्रियावादके भंग होय हैं । याका उदाहरण, जीवपदार्थ कालकार आपहीतैं नास्तिकस्वरूप कीजिये है । जीव नाम पदार्थ कालकरि परतें नास्तिकस्वरूप कीजिये है । ऐसेंही अजीव आदिपरि लगावणा तब चौदह होय । बहुरि ईश्वरआदि च्यारिपरि लगायें चौदह चौदह होय । सब मिलि सत्तरि हैं । बहुरि ऐसैंही चौदहका उदाहरण काल अरु नियति इन दोयहीपरि नास्तित्वपणा लगाया जो जीवकालतें नास्तित्व कीजिये है । जीव नियति है नास्तित्व कीजिये है, ऐसें सातपदार्थ के चौदह होय । इहां विशेष यह भया, जो, स्वतः परतः न कह्या नास्तित्वही कह्या । ऐसें अक्रियावादके चौरासी भंग जानने ॥ अब अज्ञानवाद के सतसठि भंग कहे हैं। तहां नवपदार्थनिपरि अस्तिनास्ति आदि वचन के सात भंग हैं ते लगावणे, तब तरेसठि होय । याका उदाहरण, जीवपदार्थ अस्तिस्वरूप है, यह कौन जानें है ? कोऊही न जानें। जीव नास्तिस्वरूप है, यह कौन जाने है ? कोऊही जानें नाहीं । ऐसें सातौही भंग नवपदार्थपरि लगाय लेणे । बहुरि नवपदार्थका भेद नाहीं करै, अर एक
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