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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७०६॥ | बहुरि इहां भाज्यका अर्थ ऐसा जानना, जो, एक आवै दोय आवै ऐसे उगणीसताई आवे ॥
आगें पूछे है कि, गुप्ति समिति धर्म अनुप्रेक्षा परीषहजय ए पांच संवरके कारण तो कहै ।। अब छठा कारण चारित्र है, ताके भेद कहने । ऐसें पूछ ताके भेद कहने कू सूत्र कहै हैं । सामान्य | अपेक्षाकरि तौ चारित्रमोहके उपशम क्षय क्षयोपशमतें भई जो आत्माके विशुद्धिकी लब्धि एकही | है। सो चारित्र एकही कहिये । बहुरि एकप्राणीनिका पीडाका परिहार अर इंन्द्रियनिका निरोधकी | अपेक्षा दोयभी कहिये । बहुरि उत्कृष्ट मध्यम जघन्य अपेक्षा तीनिभी कहिये । बहुरि क्षयोपशमज्ञानीकी अपेक्षा सरागवीतरागभेदकरि तथा केवलज्ञानीके सयोग अयोगभेदकरि च्यारि भेदभी , कहिये । बहुरि पांच भेदका सूत्र है॥सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम् १८ __. याका अर्थ- सामयिक छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसांपराय यथाख्यात ऐसे
पांच भेदरूप चारित्र है । इहां प्रश्न, जो, दशप्रकार धर्मविर्षे संयम कह्याही है, सोही चारित्र || al है, यह फेरि कहना अनर्थक है । ताका समाधान, जो, अनर्थक नाहीं है। धर्मके विर्षे अंतर्भूत
है, तोऊ अंतविर्षे चारित्रका ग्रहण कीया है। जातें यह मोक्षकी प्राप्तिका साक्षात् कारण है।
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