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ఆడగలడందరూ కందకుండకుండలను
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७०८ ॥ ख्यातभी कहिये । जातें अथशब्दका अर्थ अनंतर पदार्थ होय सो है, यह समस्तमोहके क्षय तथा | उपशमके अनंतर होय है, तातें अथाख्यात नाम सार्थक है । बहुरि आत्माका स्वभाव जैसा अवस्थित है तैसाही यामें फह्या है, तात याका नाम यथाख्यातभी कहिये । बहुरि सूत्रमें इतिशब्द है सो परिसमाप्ति अर्थविर्षे है । तातें ऐसा जानिये, जो, यथाख्यातचारित्रतें सकलकर्मके क्षयकी परिसमाप्ति होय है । बहुरि सामायिकादिकका अनुक्रमका कहना है । ताकरि अगिले अगिले चारित्रवि गुणकी विशुद्धताकी वृद्धि है । ऐसें जनाया है ॥
इहां विशेष कहिये हैं, सर्वसावद्ययोगका अभेदकरि त्याग करै सो सामायिक है । याका | शब्दार्थ ऐसाभी कीया है, जो, प्राणीनिके घातके कारण जे अनर्थ तिनकू आय ऐसा नाम कहिये सम् ऐसा उपसर्ग देनेते एकीभूत अर्थ भया । तातें अनर्थ एकटे भये होय तिनकू समाय ऐसा || कहिये । ते समाय जाका प्रयोजन होय सो सामायिक कहिये । तातें ऐसा अर्थसिद्धि होय है। सो सर्वपापका सामान्य एकाही त्याग जहां होय सो सामायिकचारित्र है। इहां कोई कहै, ऐसा । तो गुप्तिभी है। ताका समाधान, जो, यामें मनसंबंधी प्रवृत्ति है, गुप्तिविर्षे प्रवृत्तिका निषेध है । बहुरि याकू समितिभी न कहिये । जातें सामायिकवालेकू प्रवृत्तिका उपदेश है। ताविर्षे प्रवृत्ति |
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