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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पानं ७०९ ॥
होय तां समिति कहिये । ऐसा सामायिकका कारण है सो समिति कार्य है । ऐसा कार्यकारणका भेद है । बहुरि परिहारविशुद्धिविषै ऐसा विशेष है, जो इसकूं धारै जो पुरुष तीस वर्षका होय, तीर्थंकरके निकट पृथक्त्ववर्षतांई सेवन कीया होय, प्रत्याख्यानपूर्व तहां पढ्या होय, जीवनिकी उत्पत्ति मरणके ठिकाणे कालकी मर्याद जन्म योनिके भेद देशका द्रव्यका स्वभावका विधानका जाननहारा होय, प्रमादरहित होय, महावीर्यवान् होय, जाकै विशुद्धता के बलतें कर्म की प्रचुरनिर्जरा होती होय, अतिकठिन आचरणका धारणेवाला होय, तीनूं संध्याविना दोयकोश नित्य विहार करनेवाला होय, ताकै परिहारविशुद्धिसंयम होय है । अन्यकै नाहीं होय है |
बहुरि सूक्ष्म सांपरायसंयम ऐसे मुनिके होय है, जो सूक्ष्मस्थूल प्राणीनिकी पीडाके परिहारविषै प्रमादरहित होय, बहुरि स्वरूपके अनुभवविषै बघता उत्साह जाकै होय, जाकै अखंडक्रियाविशेष होय, बहुरि सम्यग्दर्शनज्ञानरूप प्रचंडपवन ताकरि प्रज्वलित भई, जो शुद्धआशयरूप अभिकी शिखा ताकरि दग्ध भये हैं कर्मरूप इंधन जाके, बहुरि ध्यानके विशेषकरि क्षीण कीये हैं कषायरूप विषके अंकुरे जानें, बहुरि नाशके सन्मुख भया है मोहकर्म जाके, याही पाया है सूक्ष्मस पराय संयम जानें ऐसा मुनिकै होय है । याका गुप्तिसमितिविषै अंतर्भाव जानना । जातें
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