________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
GAFONPROGRESPROGATIOPORATIOPOpaparATIOPRACTREASON
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ६७९॥ निपट थाडे हैं। तातें तसपर्याय जैसे वालूरेतके समुद्रविर्षे हीरेकी कणी सूक्ष्म गिरि पडे ताका फेरि पावना दुर्लभ होय तैसें दुर्लभ है । तहांभी विकलत्रय बहुत हैं । पंचेन्द्रिय थोरे हैं । सो पंचेन्द्रियका पावना ऐसा दुर्लभ है जैसे गुणनिविषे कृतज्ञता कहिये कीये उपकारका न भूलना सो दुर्लभ होय तैसें है। तहांभी तिर्यंच पशु मृग पक्षी सरीसृप आदि बहुत हैं, मनुष्य अल्प हैं । सो मनुष्यपर्यायका | पावना ऐसा दुर्लभ है, जैसे चौडे पडी रत्नकी राशिका पावना दुर्लभ होय तैसें है। तिस मनुष्यपर्यायकू गये फेरि ताका पावना ऐसा दुर्लभ है; जैसे कोई वृक्ष वलि गया ताकी भस्मी होय गई तिनके | | पुद्गलपरमाणु फेरि तिसही वृक्षपणाके भावकू प्राप्त होय ए अतिदुर्लभ जानूं ॥
बहुरि जो फेरि मनुष्यपणाभी पावै तौ भला देश जामें हिताहितका विचारसहित प्राणी | | वसते होय ऐसा पावना दुर्लभ है । जाते पशुसमान मनुष्यनिका देश बहुत है, भला देश थोरा | | है । बहुरि वहांभी भला कुल पावना दुर्लभ है । जाते पापकर्मकरि सहित कुल बहुत हैं । भले || है। कुल थोरे हैं । बहुरि तहांभी बडी आयु पावना दुर्लभ हैं। तहांभी इन्द्रिय भले पावना दुर्लभ || all है। तहांभी बल पराक्रम पावना दुर्लभ है। तहांभी भला रूप शरीर नीरोग पावना दुर्लभ || | है। बहुरि जो ए सर्वही पावै अरु धर्मका लाभ न होय तो सर्व पावना निरर्थक है । जैसें मुख
AMPARKHAPARIHARATPAKFA-AROPATASAMPARKHAPAGARPAN
For Private and Personal Use Only