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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ६८२ ॥
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षह सहने । इहां संवरका प्रकरण है, तातें तिसका विशेषण मार्ग कीया है। मार्ग संवर है, तातें च्युत न होनेके अर्थि बहुरि कर्मनिर्जराके अर्थि परीषह सहने कहै हैं । कष्ट आये मार्गत चिगै नाही, ताकी परीषह सहना साधन है । क्षुधा तृष्णा आदि बडे बडे कष्ट सहै तब भगवानका भाष्या | मार्गरौं न छूटते सतें तैसें ते तिस मार्ग प्रवर्तते कर्मका आवनेका द्वार जो आश्रय ताका संवर करते | संते आप उद्यमकरि पचाया जो कर्मका फल ता• भोगवते संते अनुक्रम निर्जरे है कर्म जिनके ते महामुनि मोक्ष... प्राप्त होय हैं। आगें परीषहनिमित्त संज्ञासूत्र कहै हैं- .
॥क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीच-निषद्याशय्याक्रोशवध
याचनालाभरोगतणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि ॥ ९॥ ___याका अर्थ-क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, | आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान, अदर्शन ए| बाईस परीषह हैं । ए क्षुधाआदिक हैं ते वेदना पीडाका विशेष हैं ते बाईस हैं इनका सहना मोक्षके
अर्थिनळू करना । सो कैसे सोही कहै हैं । ऐसें महामुनिकें क्षुधाका जीतना कहिये । कैसे हैं ? | प्रथम तो भिक्षावृत्तिकरि परके घर आहार ले हैं, तातें तो भिक्षु ऐसा नाम है जिनका। बहुरि निर्दोष
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