________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
necesterosserticisteries
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७०२॥ ध्यानरूपी अमिकरि घातिकर्मरूप ईंधनकू ज्यां बाल्या, तिनके अनंत निर्बाध ज्ञानादिचतुष्टय प्रगट भया सो अंतरायके प्रभावतें निरंतर संचयरूप शुभपुद्गल होय हैं, सो वेदनीयकर्म है । सो सहायविना क्षीणबल हूवा संता अपना प्रयोजन उपजावनेकू समर्थ नाहीं है, तैसें क्षुधाआदि वेदनारूप परीपहनिका अभावही जानना ॥ ___आगें पूछे है, जो, सूक्ष्मसांपरायआदिविर्षे भेदरूप केई परीषह कहै तो ए समस्तपरीषह कौनविषे हैं ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
॥ बादरसाम्पराये सर्वे ॥१२॥ याका अर्थ- बादरसांपराय कहिये प्रमत्ततें लगाय अनिवृत्तिवादरसांपराय जो नवमां गुण| स्थान तहांताई सर्व परीषह हैं। तहां सांपराय तो कषायकू कहिये । बहुरि बादरकषाय जहां होय सो बादरसापराय है । इहां गुणस्थानविशेषका ग्रहण तौ न करना, प्रयोजनमात्रका ग्रहण करना तातें प्रमत्तआदि संयमीका ग्रहण करना, तिनविः कषायनिका आशय क्षीण न भया । तातें सर्व
परीषह संभवे हैं । इहां कोई पूछ, जो, कैसे चारित्रमें सर्व परीषह संभवे हैं ? तहां कहिये है, है। सामायिक छेदोपस्थापन परिहारविशुद्धि संपमविषे कोई एक संयमविर्षे सर्वपरीपहनिका संभव है ॥
addistricanceros
For Private and Personal Use Only