________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Catopreritupatopatsetopertsperitocreats
॥ सर्वार्थसिद्धिवनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ६८९ ॥ . निर्वाणक्षेत्र आदि देश तिनकी भक्तिके अर्थि कीया है देशांतरगमन जिनि, बहुरि गुरुनिके आज्ञाकारी हैं, बहुरि पवनज्यों काहूंसों संग न करै हैं-निर्लेप हैं, बहुरि बहुतवार कीया जो अनशन अवमोदर्य वृत्तिपरिसंख्यान रसपरित्याग आदि तप ताकी बाधा ताकरि क्षीण भया है काय जिनका, बहुरि देशकालके प्रमाण मार्गविर्षे गमन ऐसे करें हैं, जाते संयम विराध्या न जाय, बहुरि त्यागे हैं पगनिके जोड़ी आदि आवरण जिनके, कठोर कांकरकी भूमि तथा कंटक आदिकरि वीधे गये जे पाद तिनका भया है खेद जिनके, तौऊ पूर्व गृहस्थपणोमें पालकी घोडे रथ आदि चढते थे । तिनकू यादि नाहीं करै हैं, बहुरि कालकी काल आवश्यकक्रियाकी हानिकू न करें हैं ऐसे मुनिके चर्यापरीषहका सहन कहिये ॥ इहां विशेष जो, अनेकदेशनिविर्षे गमन करै हैं तिन देशनिकी भाषा तथा क्रिया व्यवहारकू जानते संते छोटे गाममें तो एकरात्रि बसें हैं, बडे नगरमें पंचरात्रि बसें हैं, इह उत्कृष्ट बसना जानूं ॥९॥
आप संकल्पमें कीया जो आसन तिसते चले नाही, सो निषद्यापरीषहका जीतना है । तहा स्मशान सूनां ठिकाणा पर्वतकी गुफा वृक्षनिके तले वेलिनका मंडप इत्यादिक जिनमें पूर्व हा अभ्यास न कीया कदे बैठे नाहीं ऐसे स्थानक तिष्ठे हैं । बहुरि सूर्यका प्रकाश तथा अपनी इंद्रियका
CADsexderivatisaxsaturiaasaberdasti
For Private and Personal Use Only