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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६३८ ॥
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| जानना । ऐसें बंधपदार्थ कह्या, सो यह अवधिमनःपर्ययकेवलज्ञानीनिकै तो प्रत्यक्षप्रमाणके गम्य है, ते प्रत्यक्ष जाने हैं। बहुरि अन्यके तिनके उपदेश आगमप्रमाणकें गम्य है । तातें भव्य जीवनिळू तिनका उपदेश्या आगमतें जानि इस कर्मबंधका विध्वंसका उपाय करना योग्य है । ॥ छप्पय ।। बंध च्यारि परकार बांधि संसार भमें जिय,
मिथ्या अविरत अरु प्रमादहू कषाय योग लिय । दुःख अनेक परकार जनममरणादिक भुगतहि, गिनत नांहि सविकार ज्ञान परभावसु जुगतहि । जिनआगमके सरधानविन चारित सत्यारथ नहीं,
इम शुद्धातम अनुभवविगरि मुकति नाहि मुनि यों कही ॥ १ ॥ ॥चौपाई॥ पुण्यपापमय है संसार । दोऊ करमबंध परकार ॥
ऐसें पुण्य गहौ जिय सार । जो शिवमारगमें सहकार ॥ १ ॥ ऐसे तत्वार्थका है अधिगम जाते ऐसा जो मोक्षशास्त्र ताविर्षे
आठमां अध्याय पूर्ण भया ।
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