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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६२० ॥
नाराचसंहनन है। बहुरि जामें हाडनकी संधिके कीला एकतरफ तो होय दूसरीतरफ न होय, सो अर्धनाराचसंहनन है । बहुरि हाडनिकी संधि छोटी कीलनिकरि सहित होय, सो कीलकसंहनन है। बहुरि जामें हाडनिकी संधिमें अंतर होय चौगिरद बडी नस छोटी नस लिपटी होय मांसकरि | भवा होय, सो असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन है । ऐसें छह भये ॥
बहुरि जाके उदयते स्पर्श निपजै, सो स्पर्शनाम है । सो आठप्रकार है, कर्कश मृदु गुरु | लघु स्निग्ध रूक्ष शीत उष्ण ऐसें । बहुरि जाके उदयतें रस निपजै, सो रसनाम है । सो पांच | | प्रकार है, तिक्त कटुक कषाय आम्ल मधुर ऐसें । बहुरि जाके उदयतें गंध उपजै, सो गंधनाम | | है । सो दोयप्रकार है, सुरभि असुरभि । बहुरि जाके उदयतें वर्ण निपजै, सो वर्णनाम है । ताके | | पांच भेद हैं, कृष्ण नील रक्त पीत शुक्ल ऐसें । बहुरि जाके उदयतें पहला शरीरका आकार बण्या |
रहै नवा शरीरकी वर्गणा ग्रहण न करै, जेतें आनुपूर्व्यनाम है । याका उदय उत्कृष्ट तीनि समय | विग्रहगतिमें रहै है । सो च्यारिप्रकार है, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, | मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य ॥
बहुरि जाके उदयतें लोहके पिंडकीज्यों भाया होयकरि तलै गिरि पडै तथा आकके
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