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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६२६ ॥ लगाय जेते काल अवस्थान रहै सो स्थितिबंध जानना ॥ आगे, मोहनीयकर्मकी उत्कृष्टस्थितिके जाननेकू सूत्र कहै हैं
॥सप्ततिर्मोहनीयस्य ॥ १५॥ याका अर्थ-- मोहनीयकर्मकी स्थिति उत्कृष्ट सत्तरि कोडाकोडी सागरकी है। इहां कोडाकोडी सागर उत्कृष्टकी पहले सूत्रतें अनुवृत्ति लेणी । यहभी स्थिति मिथ्यादृष्टि संज्ञी पर्याप्तकै बंधै है। अन्यकै आगमतें जानना ॥ आगें नाम गोत्रकी उत्कृष्टस्थिति जाननेकू सूत्र कहै हैं--
॥विंशतिर्नामगोत्रयोः ॥ १६॥ याका अर्थ-नामकर्म अर गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति वीस कोडाकोडी सागरकी है। इहांभी उत्कृष्ट कोडाकोडी सागरोपमकी अनुवृत्ति है । यहभी उत्कृष्टस्थिति संज्ञीपंचेन्द्रिय पर्याप्तकें बंधै है, अन्य आगमतें जाननी ॥ आगे आयुकर्मकी उत्कृष्टस्थिति कहने... सूत्र कहै हैं--
॥ त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुषः ॥ १७॥ याका अर्थ- आयुकर्मकी स्थिति उत्कृष्ट तेतीस सागरकी है । इहां उत्कृष्टकीही अनुवृत्ति है। ||
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