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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६२१ ॥ फूफदाकेज्यों हलका होयकरि ऊपर• उडि जाय नाहीं, सो अगुरुलघुनाम है । यह कर्मकी प्रकृति || है सो शरीरसंबंधी जाननी । जो अगुरुलघुनामा स्वाभाविक द्रव्यका गुण है, सो याकू न जानना।
बहुरि जाके उदयतें अपना घात आपकरि होय, सो उपघातनाम है । बहुरि जाके उदयतें अपना घात परकरि होय, सो परघातनाम है । बहुरि जाके उदयतें आतपमय शरीर पावै, सो आतपनाम है। यहू सूर्यके विमानविर्षे पृथ्वीकायिक जीवनिकै वतॆ है। बहुरि जाके उदयतें शरीर उद्योतरूप पावै सो उद्योतनाम है । सो यहू चंद्रमाके विमानके पृथ्वीकायिकजीवनिकै तथा आग्या आदि | जीवनिकै उदय होय है। बहुरि जाके उदयतें उच्छ्वास आवै, सो उच्छ्वासनाम है।
बहुरि जाके उदयतें आकाशविर्षे गमनका विशेष होय, सो विहायोगतिनाम है। इहां विहाय ऐसा नाम आकाशका है, यह दोयप्रकार है, प्रशस्त अप्रशस्त , याकं शुभचालि अशुभचालि कहिये । सो जीवकै कर्मके उदयतें एक आत्माकरि भोगिये ऐसी बुरी भली चाल जाननी । जो क्रियावान् द्रव्यके स्वभावहीकरि गमन होय सो नाहीं लेना । बहुरि जाके उदयतें एक आत्माकरिही भोगिये ऐसा शरीर पावै, सो प्रत्येकनाम है । बहुरि जाके उदयतें बहुतजीवनिका भोगनेका एकही शरीर होय, सो साधारण नाम है। बहुरि जाके उदयतें द्वींद्रियादिविर्षे जन्म होय, सो |
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