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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६०५ ॥ निमित्तके भेदतें पांचप्रकार है। बहुरि छै जीवनिकायके भेदतें छहप्रकार हैं। बहुरि राग द्वेष क्रोध मान माया लोभ ए सात कारण हैं। तिनकी अपेक्षा तो सातप्रकार हैं। बहुरि ज्ञानावरणादिके भेदतें अष्टप्रकार है । ऐसें शद तौ संख्यातभेद हैं। बहुरि अध्यवसायस्थानके भेदतें असंख्यातभेद हैं। बहुरि पुद्गलपरिणामरूप स्कंधभेदतें अनंतभेद हैं । अथवा ज्ञानावरण आदिके अनुभवके | अविभागपरिच्छेदनिकी अपेक्षा अनंतभेद हैं। बहुरि इनका अनुक्रम कहनेका प्रयोजन कहै हैं । तहां ज्ञान है सो आत्माके अधिगमकू निमित्त है, तातें प्रधान है, तातें आदिमें ज्ञानावरण कह्या | ताके पीछे दर्शनावरण कह्या । सो दर्शनहू अनाकार उपयोगस्वरूप है, ताते युक्त है । बहुरि ताके पीछे वेदनीय कह्या, सो ज्ञान दर्शन सुख दुःख जाननेका विरोधी है । जातें मोही होयकरि सुख | दुःख हिताहितका विचार नाहीं करै है, बहुरि याके पीछे आयु कह्या सो सुख दुःख आदि भवकें । आश्रय है भवकू आयु निमित्त है। तातें युक्त है। बहुरि ताके पीछे नाम कह्या। जातें आयुके उदयके | आश्रय नाम है। गति आदिका उदय कार्यकारी होय है । ताके पीछैभी अंतराय कह्या । सो || प्रयोजन कहे पीछे अवशेष रहै सो अंतमेंही आवै । ऐसें क्रमप्रयोजन जानना॥ आगें पूछे है, कि, कर्मबंध प्रकृतिका भेद तो अष्टप्रकार कह्या, अब उत्तरप्रकृतिबंध कहना । ऐसें पूछे सूत्र कहैं हैं
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