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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५८४ ॥ गुणका विशेष है । बहुरि मोक्षके कारण जे सम्यग्दर्शनादिक गुण जामें पाईये ऐसा पात्रका विशेष है । ऐसें विशेषः तिस दानके फलविर्षेभी विशेष है । जैसे, जैसी धरती होय तामें जैसा बीज तथा बोवनेवालेका क्रियाका विशेष होय तैसाही धान्य आदि फल निपजैं, तैसें जानना ॥
इहां ऐसाभी भावार्थ जानना, जो, अन्यमती कोई अपना परका मांसादिक देनाभी दान | कहै हैं, सो मांस आदि अपना परका उपकारका कारण नाहीं, तथा लेनेवाला योग्य पात्र नाही, तातें ताके देने का फल खोटाही है । बहुरि पात्र कुपात्र अपात्रके जघन्य मध्यम उत्कृष्टके भेदतें तथा तैसेंही विधि द्रव्य दातारके भेदतै फलकाभी अनेकप्रकारपणा है, सो अन्यग्रंथनितें जानना । सो यह स्यादादीनिका मतमें सिद्धि है, सर्वथाएकान्तवादीनिके नित्य निःक्रियादि पक्ष हैं, तथा क्षणिकपक्ष है, तिनकै परिणामपरिणामीके अभावतें किछु निर्बाधसिद्धि होती नाहीं । बहुरि भावनिकी विशुद्धता संक्लेशता फलमें प्रधान है केवल बाह्यके निमित्तकी प्रधानता नाहीं । जातें ऐसें कह्या है, जो, कोई वस्तु तौ विशुद्धतातें अपात्रनिकू दीया हुवा भले फलकू करै है । बहुरि कोई वस्तु पात्रनिकुंभी दीया हुवा संक्लेशपरिणामके वश भला फल नाहीं करै है । बहुरि कोई वस्तु पात्र तथा अपात्रनिकू दीया हुवाभी तथा न दीया हुवाभी विशुद्धपरिणामके योगते शुभही फल करै है। ऐसे
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