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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५८५ ॥
स्याद्वादमत बडा गहन है । सो श्रीगुरुही याका निर्वाह करें हैं । हरेक जनका यामें कहनेका बल नाहीं चले है । जैसैं कूपका मींडक समुद्रका पार न पावै, तैसें जनना ॥
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ऐसें सातवा अध्यायमें आश्रवपदार्थका भेद जो पुण्यका बंध करनेवाली अणुव्रत है, महाव्रत समितिक्रियारूप तथा तिनकी भावना, अतीचार टारना, दानका स्वरूप इत्यादिक का, ताकूं सुनिकरि भव्यजीव मोक्षमार्गका कथंचित् सहकारी जानि सेवौ । तातें अनुक्रमतें शुद्धात्मस्वरूपका अनुभव करि मोक्ष पावौ । ऐसा श्रीगुरुनिका उपदेश है |
॥ सवैया ॥
आश्रवपदार्थका भेद शुभवृतिरूप पंच पापपरिहार समिति सुहावनी ।
शील अनेक भेद यती घरवासी वेद अतीचार टारें विधि धारें महापावनी ||
दान देय भाव छानि पात्र मानि दुखी जानि पावैं फल तिस्यौं स्यादवाद यों कहावनी | सातमी सुसंधि कथा सुनूं मुनि कही यथा पुण्य लेस होय बंध काटि मोक्ष भावनी ॥ १ ॥ ऐ तत्वार्थका है अधिगम जातें ऐसा जो यह मोक्षशास्त्र ताविषै
सातवां अध्याय पूर्ण भया ॥
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