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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५८५ ॥ स्याद्वादमत बडा गहन है । सो श्रीगुरुही याका निर्वाह करें हैं । हरेक जनका यामें कहनेका बल नाहीं चले है । जैसैं कूपका मींडक समुद्रका पार न पावै, तैसें जनना ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसें सातवा अध्यायमें आश्रवपदार्थका भेद जो पुण्यका बंध करनेवाली अणुव्रत है, महाव्रत समितिक्रियारूप तथा तिनकी भावना, अतीचार टारना, दानका स्वरूप इत्यादिक का, ताकूं सुनिकरि भव्यजीव मोक्षमार्गका कथंचित् सहकारी जानि सेवौ । तातें अनुक्रमतें शुद्धात्मस्वरूपका अनुभव करि मोक्ष पावौ । ऐसा श्रीगुरुनिका उपदेश है | ॥ सवैया ॥ आश्रवपदार्थका भेद शुभवृतिरूप पंच पापपरिहार समिति सुहावनी । शील अनेक भेद यती घरवासी वेद अतीचार टारें विधि धारें महापावनी || दान देय भाव छानि पात्र मानि दुखी जानि पावैं फल तिस्यौं स्यादवाद यों कहावनी | सातमी सुसंधि कथा सुनूं मुनि कही यथा पुण्य लेस होय बंध काटि मोक्ष भावनी ॥ १ ॥ ऐ तत्वार्थका है अधिगम जातें ऐसा जो यह मोक्षशास्त्र ताविषै सातवां अध्याय पूर्ण भया ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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