________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
ఆటగలడంతcinetainertaineralులము
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ५८८ ॥ स्तुमात्रही है, एकपुरुषमात्रही यह सर्व रचना है, तथा अनेकही है, तथा नित्यही है, तथा अनित्यही है इत्यादिक नयका पक्षपात करै सो तो एकांत है। बहुरि निग्रंथ मोक्षमार्ग है ताकू सग्रंथ कहै, केवलीकों कवलाहार करता बतावें, स्त्रीकू मोक्ष बतावे इत्यादिक विपर्ययरूप विपरीतमिथ्यात्व है। बहुरि सम्यग्दर्शनज्ञानच्यारित्रात्मक मोक्षमार्ग कह्या है, सो यह है कि नाहीं ऐसा पक्ष करै सो संशयमिथ्यात्व है । बहुरि सर्वदेवनिकू तथा सर्वशास्त्रनिकू तथा सर्वमतनिकू समान मानें, सर्वका विनय करे, मिथ्यात्व सम्यक्त्वका भेद न जाणे, सो वैनयिकमिथ्यात्व है। बहुरि हितअहितकी परीक्षा रहित अंधेकीज्यों परिणाम सो आज्ञानिकमिथ्यात्व है । इहां उक्तं च गाथा है, ताका अर्थक्रियावादीनिके एकसौ असी भेद हैं, अक्रियावादीनिके चौरासी भेद हैं, अज्ञानवादीनिके सतसठि भेद हैं, वैनयिकवादीनिके बतीस भेद हैं । ऐसें तीनिसै तिरेसठि भेद सर्वथाएकान्तवादीनिके हैं ।।
इहां विशेष ऐसा है, जो, अविरत बारहप्रकार हैं। तहां पांच इंद्रिय अर एक मन इनके विषयनिविर्षे रागादिसहित प्रवृत्ति छह तो ए बहुरि छहकायके जीवनिकी रक्षा न करै छह ए, | बहुरि अनंतानुबंधी आदि सोलह कषाय अरु नव नोकषाय ऐसे पचीस कषाय हैं। नो कहिये | | ईषत् किंचित् ऐसा नो शब्दका अर्थ लेणा अभाव अर्थ न लेना । बहुरि च्यारि मनोयोग, च्यारि ||
aabeatabeertabisexlovertiseraboutupsaas
For Private and Personal Use Only