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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ५८६ ॥
॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥
॥ आगें आठवां अध्यायका प्रारंभ है ||
दोहा -- आठ करमके बंधकूं । काटि भये निकलंक ॥ नमूं सिद्ध परमातमा । मन वच काय निशंक ॥ १ ॥
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ऐसें मंगलके अर्थि सिद्धनिकुं नमस्कार करि आठमां अध्यायकी वचनिका लिखिये है । तहां सर्वार्थसिद्धिटीकाकारके वचन हैं जो आश्रवपदार्थका तौ व्याख्यान कीया, ताकै अनंतर है नाम का ऐसा पदार्थ है, सो अब व्याख्यान करनेयोग्य है, ताकूं व्याख्यान योग्य होते पहले तौधका कारणका स्थापन करिये है । जातें बंध है सो कारणपूर्वक है, यातें ताका सुत्र कहै हैं॥ मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥ १ ॥
याका अर्थ - मिथ्यादर्शन अविरति प्रमाद कषाय योग ए पांच बंधके कारण हैं। तहां
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