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॥ सर्वार्थसिडिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय । पान ५०९ ॥
॥ अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥ १७॥ ___ याका अर्थ- अल्पारंभपणा अल्पपरिग्रहपणा है सो मनुष्यके आयुका आश्रवका कारण है। तहां जो नारकका आयुका आश्रव कह्या था, तातें विपरीति कहिये उलटा मानुषआयुका आश्रव है। ऐसा तो संक्षेपकरि जानना । बहुरि याका विस्तार ऐसा- विनययुक्तस्वभाव होय, प्रकृतिहीकरि भद्रपरिणाम होय, मनवचनकायकी सरलताघ्र व्यवहार करे, थोरे कषाय होय, मरणकालविर्षे संक्लेशपरिणाम नाही होय इत्यादिक जानना ॥ भावार्थ ऐसा, जो, पापपुण्यरूप मिश्रमध्यके परिणामनितें मनुष्यआयुका आश्रव होय है ॥
आगे प्रश्न, जो, मनुष्यआयुका आश्रव एतावन्मात्रही है, कि किछु औरभी है ? ऐसे पू. उत्तरका सूत्र कहें हैं--.
॥स्वभावमार्दवं च ॥ १८॥ . याका अर्थ- स्वभावहीकरि कोमलभाव होय सोभी मनुष्यआयुका आश्रव है। इहां | मृदुका भाव सो तो मार्दव है, सो अन्यकारणकी अपेक्षारहित स्वभावहीकरि मार्दव होय, सो | तो मार्दव कहिये । यहभी मनुष्यआयुका आश्रव है । इहां पहले सूत्रतें न्यारा सूत्र कीया, ताका
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