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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५३५॥ हास्यका प्रत्याख्यान, अनुवीचीभाषणं कहिये निष्पाप सूत्रके अनुसार वचन बोलना ऐसें ए पांच भावना सत्यव्रतकी जाननीं । इहां भावार्थ ऐसा, जो, क्रोधादिकके निमित्तते असत्य बोलिये है, तिसका बारबार चितवन राखणा, तब असत्यकी प्रवृत्ति न होय, सत्यव्रत दृढ रहै ।।
आगें तीसरे व्रतकी कहा भावना है, ऐसें पूछ सूत्र कहै हैं - ॥ शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादाः पंच॥६॥
याका अर्थ- शून्यागार कहिये गिरिकी गुफा वृक्षका कोटर इत्यादिविर्षे वसना, परका छोड्या ठिकाना होय सो विमोचितावास है तहां वसना, बहुरि परका उपरोध कहिये वर्जना सो
न करना भावार्थ-जिस ठिकाणे आय बैठे तहां कोई और आवै ताकू वर्जे नाही तथा आपकू | कोई मनें करै तहां बैठे नाही, बहुरि आचारशास्त्रके मार्गकरि भिक्षाकी शुद्धता करि आहार
ले, बहरि यऊ वस्तिका तथा श्रावकआदि हमारे हैं यह तुमारे हैं ऐमा आपसमें साधर्मीनुसं | विसंवाद न करै ऐसें ए पांच भावना तीसरा अदत्तादानविरमणव्रतकी हैं ॥ इहां भावार्थ ऐसा,
जो, वस्तिका भोजनआदि वस्तुनिके अर्थि कोईतूं परस्पर झगडौ उपजै तहां अदत्तादानका प्रमंग आवै है । तातें इन भावनातें व्रत दृढ रहै है ॥
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