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। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५७३ ॥ भवरा भ्रकुटिका विक्षेपकरि इत्यादि चेष्टाकरि परका अभिप्राय जाणिकरि चुगली करने कू इर्षादिकतें ताका प्रगट करना, सो साकारमंत्रभेद है। ऐसे ए पांच सत्य अणुव्रतके अतीचार हैं।
आगे अचौर्यव्रतके अतीचार कहै हैं॥स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः२७
याका अर्थ-- स्तेनप्रयोग तदाहतादान विरुद्धराज्यातिक्रम हीनाधिकमानोन्मान प्रतिरूपकव्यवहार ए पांच अचौर्यअणुव्रतके अतीचार हैं । तहां कोई चोरी करता होय ताकू आप प्रेरै तथा पर... कहिकरि प्रेरणा करावै अथवा पैला प्रेरै ताकी सराहना करै ताकू भला मानै सो स्तेनप्रयोग है। इहा स्तन नाम चारका है, ताकू प्रेरै बहुरि चोरकू आपु प्रेखाभी नाही सखामी नाही परंतु चोरका ल्याया द्रव्यका ग्रहण करै, सो तदाहृतादान है । बहुरि योग्यन्यायकू उल्लंघि अन्यप्रकार लेना देना सो तो अतिक्रम कहिये, सो यऊ राज्यसू विरुद्ध होय सो विरुद्धराज्यातिकम है । | तहां बडा मोलकी वस्तु अल्प मोलमें लेणेका यतन विचारखो करै, सो विरुद्ध राज्यातिक्रम जानना । बहुरि पाई माणि इत्यादिक तौ मान कहिये, इनकू प्रस्थ आदि कहिये । बहुरि ताखडीके तौला आदि उन्मान कहिये । सो इनकरि घटनेकरि तौ परकू देना अर वधतेकरि परका
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