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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५७२ ॥ बहुरि गऊ आदिकू सुधा तृषा आदि बाधारूप क्रियाका करना, खाना पीना न देना, सो अन्नपाननिरोध है । ए पांच अहिंसा अणुव्रतके अतीचार हैं॥
आगें दुजे अणुव्रतके अतीचार कहनेकू सूत्र कहै हैं॥मिथ्योपदेशरहोभ्याख्याकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥ २६॥
याका अर्थ-- मिथ्या उपदेश रहोभ्याख्यान कूटलेखक्रिया न्यासापहार साकारमंत्रभेद ए पांच अतीचार सत्यअणुव्रतके हैं। तहां स्वर्गमोक्षके कारण जे क्रियाविशेष, तिनविर्षे अन्यप्राणीनि• अन्यथा प्रवर्तावना सो मिथ्योपदेश है । बहुरि स्त्रीपुरुषनें एकांतविौं किया जो क्रियाविशेष | ताका प्रगट करना, सो रहोभ्याख्यान है । बहुरि अन्यपुरुषनें कह्या नाहीं अर परका प्रयोगके वशतें | परकू ठगनेके अर्थि झूठा लिखना जो इसनें ऐसा कह्या है तथा ऐसा कीया है ऐसे अपनी इच्छातें बणावना, सो कूटलेखकिया है। बहुरि काऊनें रूपा सोना आदि द्रव्य धरा होय सो ताकी संख्या धरनेवालाकू यादि न रही विस्मृत होय गया पीछे मांगी तब अल्प संख्या कहिं मांगी तब राखनेवालेने कही ऐतीही है तुमारी ल्यो ऐसा ताके अल्पसंख्याका वचन कहना जेती पैलें सोंपी तेती न बतावना, सो न्यासापहार है । बहुरि प्रयोजनकरि प्रकरणकरि अंगकी चेष्टाकरि
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