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॥ सर्वार्थसिद्धिवचमिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५७६ ॥
॥ ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृध्दिस्मृत्यन्तराधानानि ॥३०॥ याका अर्थ- उर्ध्व अधः तिर्यक् इन तीनिनिकी मर्यादाका व्यतिक्रम करणा अर क्षेत्रकू वधाय लेना मर्यादाकरि होय ताकू भूलि अन्य धारण करणी ए पांच अतीचार दिग्विरतिके हैं। तहां जो दिशाकी मर्याद करी थी तातें उल्लंधि जाना सो अतिक्रम कहिये । सो संक्षेप तीनिप्रकार है ऊर्ध्व अतिकम अधः अतिकम तिर्यक् अतिक्रम ऐसें । तहां पर्वतादि चढनेमें मर्यादसिवाय चट्टै सो ऊर्ध्वातिक्रम है । बहुरि कूपआदिविर्षे मर्यादसिवाय उतरणा सो अधः अतिक्रम है । बहुरि विल गुफा आदिका प्रवेशविर्षे तिर्यक् अतिकम है। बहुरि दिशाकी मर्याद करी थी तामें लोभका वशतें अधिकका अभिप्रायकरि वधावना, सो क्षेत्रवृद्धि है । सो यह अतिक्रम प्रमादतें तथा मोहतें तथा परिग्रहके निमित्त होय है । बहुरि मर्याद करी होय ताकू भूलि जाणा यादि न राखणां सो स्मृत्यंतराधान है । ऐसे ए दिग्विरतिके अतीचार पांच हैं॥ आगे देशविराति व्रतके अतीचार कहै हैं, ताका सूत्र कहै हैं
॥ आनयनप्रेष्यप्रयोगशवरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ॥ ३१॥ याका अर्थ-आनयन प्रेष्यप्रयोग शदानुपात रूपानुपात पुद्गलक्षेप ऐसे ए पांच अतीचार |
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