________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
e rsasakasexasabkrt0s
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५६३ ॥ कहै हैं । जैसे कोई पुरुषका राजमें प्रवेश होय, सो कोई राजका प्रच्छन्न ठिकाणां होय तहां ताका | गमन नाहीभी है, तौऊ ताकू कहिये इस पुरुषका राजमें सर्व जायगा प्रवेश है सर्वगत है; तैसें | इहांभी व्रतका अंगीकार है, सकलव्रत नाही तोऊ एकदेशवि सर्वदेशका उपचारकरि व्रती कहिये | है । बहुरि प्रोषधशब्द है सो पर्वका वाचकभी है, प्रोषध अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्वकू कहिये । बहुरि पांचूही इन्द्रिय अपने विषयतें छूटि जामें आय वसै सो उपवास कहिये । जहां च्यारिप्रकार आहारका त्याग होय सो उपवास है, ऐसा अर्थ जानना । जो प्रोषधविर्षे उपवास होय सो प्रोषधोपवास कहिये । तहां अपने शरीरका संस्कारके कारण स्नान सुगंध पुष्पमाला गहणा आभरण आदिकरि रहित होय पवित्र क्षेत्र अवकाशविर्षे तथा साधुमुनि जहां वसे तैसे क्षेत्रविर्षे | तथा चैत्यालयविर्षे तथा अपने रहने की जायगामें न्यारा प्रोषधोपवास करनेका स्थानक होय तहां धर्मकथाका सनन चितवना तिसविर्षे मन लगाय बैठा रहै आरंभादिक किछ कर नाही, सो प्रोषधोपचास है।
बहुरि उपभोग कहिये भोजन पाणी सुगंध माला आदिक एकवार भोगनेमें आवें बहुरि || परिभोग कहिये वस्त्र आभूषण सेज आसन गृह यान वाहन आदिक वारवार भोगनेमें आवें इन |
akorittariab
For Private and Personal Use Only