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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५३४ ॥
॥ तत्स्थैयार्थ भावनाः पंचपंच ॥३॥ याका अर्थ- इन व्रतनिके स्थिर करनेकै अर्थ एकएक व्रतकी पांच पांच भावना हैं । इहां ऐसा जानना, जो, इनि भावना भायेतें व्रतीनिके उत्तरगुणका संभवना होय है ॥
आगे, जो ऐसे है भावनातै व्रत दृढ होय है, तो आदिमें कह्या जो अहिंसावत ताकी भावना कहा है? ऐसे पूछे सूत्र कहैं हैं
॥ वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पंच ॥४॥
याका अर्थ- वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति, आलोकितपानभोजन ए पांच अहिंसावतकी भावना हैं। तहां गुप्तिसमितिका स्वरूप आगे कहसी । बहुरि आलोकितपानभोजन कहिये आहारपाणी लेना सो दिनविर्षे नीकै देखिकरि लेना। इनका बारबार चिंतवन करना, सो भावना है ।
आगें, दूसरे व्रतकी कहा भावना है, ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
॥ क्रोधलोमभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचीभाषणं च पंच ॥५॥ याका अर्थ- क्रोधका प्रत्याख्यान, लोभका प्रत्याख्यान, भयवानपणांका प्रत्याख्यान,
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