________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिदिवचनिका पंडित जयचंदीकुता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५३६ ॥ आगें, ब्रह्मचर्यकी भावना कहनेयोग्य है सो कहीं ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं-- ॥ स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षगपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीर
संस्कारत्यागाः पंच ॥७॥ याका अर्थ-- इहां त्यागशब्द प्रत्येककै लगाय लेणां । तहां स्त्रीनिकी रागसहित कथा सुननेका त्याग, स्त्रीनिका सुन्दर मनोहर अंगका रागसहित देखनेका त्याग, वृष्य कहिये पुष्टरस कहिये रसीला झरता सर्वत आदिका त्याग, पहले भोग किये थे तिनका बारबार यादि करनेका त्याग, अपने शरीरका संस्कार कहिये सवारना स्नान सुगंध लेपन इत्यादि करनेका त्याग ऐसे | ए चौथे व्रतकी पांच भावना हैं। इनकू बारबार भाये ब्रह्मचर्यवत थिरता पावै है ।। आगे पांचमा व्रतकी कहा भावना है, ऐसें पू0 सूत्र कहें हैं--
॥ मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पंच ॥ ८॥ याका अर्थ- स्पर्शन रसन घाण चक्षु श्रोत्र ए पांच इन्द्रिय तिनके विषय जे स्पर्श रस | व गंध वर्ण शब्द इनका संबंध होते रागद्वेषका न करना ए पांच भावना आकिंचन्य नामा पांचवां |
For Private and Personal Use Only