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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५४१ ॥
बहुरि जैसे आपके दुःखके कारण हैं; तैसेंही परकेविर्षेभी जानना । बहुरि इहां तर्क, जो, ते सर्वही दुःख कहे सो नाहीं हैं। जाते विषयनिके सेवनेविर्षे सुख देखिये है। ताका समाधान, जो, विषय सेवनेविर्षे सुख माने है, सो सुख नाहीं है । विषयनिकी इच्छा नामा वेदना पीडा उपजै है, ताका इलाज प्राणी करै है। जैसे खाजिका दुःख होय ताकू खुजावै, तब सुख माने है, परमार्थतें खुजावनेविर्षे सुख नाहीं, सुखका स्वरूप तौ आकुलतारहित है, सो विषय सेवनेमें तो आकुलताही है, निराकुलपणा तो होय नाही ॥ ____ इहां विशेष जो, जैसे आपकै भावै तैसें परकैभी भावे, सो कैसे ? जैसे वध बंधन पीडन मोकू बुरे लागे हैं, दुःख उपजावें; तैसैं परकैभी दुःख उपजावै हैं । तथा जैसैं मोकू कोई छूठ कहै कडी कहै कठोर कहे सो बुरी लागै है, दुःख उपजावै है; तैसैं परकू मैं कहूं तौ ताकू बुरी लागे है, दुःख उपजावै है । तथा जैसैं मेरा धनादिक जाय तब मेरै बडा कष्ट दुःख उपजै है, तैसेंही अन्यजीवकै उपजै है । तथा मेरी स्त्रीका कोई अपमान करै तब मेरै जैसे दुःख पीडा उपजै; तैसें अन्यजी| वकभी दुःख उपजै है । तथा मेरै धनकी अप्राप्तिविर्षे वांछा तथा याके नाशविर्षे शोक होय है, तैसें
परकैभी कष्ट होय है । ऐसें हिंसादिक परकैभी दुःखके कारण जानना ॥
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