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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५३४ ॥ ॥ तत्स्थैयार्थ भावनाः पंचपंच ॥३॥ याका अर्थ- इन व्रतनिके स्थिर करनेकै अर्थ एकएक व्रतकी पांच पांच भावना हैं । इहां ऐसा जानना, जो, इनि भावना भायेतें व्रतीनिके उत्तरगुणका संभवना होय है ॥ आगे, जो ऐसे है भावनातै व्रत दृढ होय है, तो आदिमें कह्या जो अहिंसावत ताकी भावना कहा है? ऐसे पूछे सूत्र कहैं हैं ॥ वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पंच ॥४॥ याका अर्थ- वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति, आलोकितपानभोजन ए पांच अहिंसावतकी भावना हैं। तहां गुप्तिसमितिका स्वरूप आगे कहसी । बहुरि आलोकितपानभोजन कहिये आहारपाणी लेना सो दिनविर्षे नीकै देखिकरि लेना। इनका बारबार चिंतवन करना, सो भावना है । आगें, दूसरे व्रतकी कहा भावना है, ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं ॥ क्रोधलोमभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचीभाषणं च पंच ॥५॥ याका अर्थ- क्रोधका प्रत्याख्यान, लोभका प्रत्याख्यान, भयवानपणांका प्रत्याख्यान, For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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