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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ४८९ ॥
॥ तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्तद्विशेषः ॥ ६ ॥ याका अर्थ - तीव्रभाव मंदभाव ज्ञातभाव अज्ञातभाव अधिकरण वीर्य इनके विशेष तिस आश्रवका विशेष है। तहां बाह्य अभ्यंतर के कारणके वशर्तें उदयरूप भया जो उत्कट परिणाम सो तीव्र है । यातें विपरीति जो उत्कट नाहीं, सो मंद है । यहू प्राणी मैं मारूं ऐसें जानि मारने की प्रवृत्ति करै, सो ज्ञात ऐसा कहिये । मदतें तथा प्रमादतें विनाजाणिकरि प्रवृत्ति होय, सो अज्ञात है । जाविषै कार्य अधिककरि कीजिये, सो अधिकरण है, या आधारभी कहिये तथा द्रव्य कहिये । द्रव्यकी तिन शक्तिका विशेष, सो वीर्य है । भावशब्द प्रत्येक दीजिये । तब तीव्रभाव मंदभाव इत्यादि जानना । इनके विशेष तिस आश्रवका विशेष है । जातैं कारण के भेद कार्यविभी भेद होय है ऐसें जानना || sai भावार्थ ऐसा, जो, क्रोध आदिके अतिबंधनेतें तीव्रभाव होय है, तिन कषायनिके मंदउदय मंदभाव हो है । बहुरि या प्राणी कूं मैं मारूं ऐसा परिणाम भी न होय अर प्राणी मात्रा जाय ताहि जाणें जो यह माया गया तथा आप जाणिकरि मारै सो ज्ञातभाव है । बहुरि मदिरादिकके निमित्त इन्द्रियनिका असावधान होना, सो मद तथा असावधानीतें प्रवर्तना प्रमाद
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